फ़ादर स्टेन स्वामी की मौत नहीं बल्कि फ़ासीवादी निज़ाम द्वारा हत्या है!

दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा की ओर से गोरखपुर विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर फ़ासीवादी निज़ाम द्वारा फ़ादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हत्या के विरोध में प्रदर्शन किया गया। फ़ादर स्टेन स्वामी को पिछले एक साल से फ़ासीवादी निज़ाम द्वारा भीमा कोरेगाँव मामले में फ़र्ज़ी आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया था। स्टेन स्वामी उन आदिवासी युवाओं की लड़ाई लड़ रहे थे, जिन्हें माओवादी होने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया था। फ़ादर स्टेन स्वामी कई बीमारियों से जूझ रहे थे और जेल में उनकी कोविड जाँच तक नहीं करायी गयी। बाद में जाँच होने पर वो कोविड पॉज़िटिव निकले। वेण्टिलेटर पर होने के बावजूद एनआईए ने फ़ादर स्टेन की जमानत का विरोध किया और न्यायालय ने उनको जमानत नहीं दी।
दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने कहा कि मौज़ूदा फ़ासीवादी सरकार आपातकाल से भी ख़तरनाक तरीक़े से काम कर रही है क्योंकि आपातकाल के दौर में तो सरकार के दमन और कुकृत्य तो सीधे जनता की सामने आ रहे थे और आम जनता सीधे राजकीय दमन का शिकार हो रही थी। लेकिन मौज़ूदा फ़ासीवादी मोदी सरकार आपातकाल से सबक़ लेते हुए चुन-चुन कर सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों, जनता के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं को निशाना बना रही है। जगह-जगह भीड़ द्वारा हत्याएँ, जनता के पक्ष में बोलने वाले कलबुर्गी, पानसारे, दाभोलकर, गौरी लंकेश जैसे लोगों की चुन-चुन कर हत्या, यूएपीए जैसे काले क़ानूनों के ज़रिए लोगों को जेल में डालना एक आम नियम बन चुका है।

वास्तव में फ़ासीवाद का मुक़ाबला आज के समय के केवल प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शनों के दम पर नहीं किया जा सकता है। फ़ासीवादी संघ परिवार और भाजपा अपने सैकड़ों संगठनों के माध्यम से आम जनता के बीच पैठ बनाये हुए हैं। बच्चों, युवाओं समेत समाज के हर तबक़े में वह अपने नफ़रती एजेण्डे को लगातार फैलाते रहते हैं। कुछ ही मिनटों में अफवाह को लोगों के बीच में एक आम सच्चाई बना देते हैं। टीवी-चैनलों, अख़बारों का पूरा तन्त्र भी उनका भोंपू बना हुआ है। यही वज़ह है कि किसी भी ऐसे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी, सरकार द्वारा उनकी हत्याएं आम जनता के लिए कोई मुद्दा नहीं बनती हैं। जबकि दूसरी ओर जब फ़ासीवादी एजेण्डे के तहत तमाम सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर नक्सली, माओवादी आदि का ठप्पा लगाया जाता है तो गली-गली तक इनकी बातें पहुँच जाती हैं। आज प्रगतिशील और जनपक्षधर छात्रों-युवाओं, बुद्धिजीवियों, संगठनों को जनता के बीच में धँसते हुए तृणमूल स्तर पर इनसे मुक़ाबला करने की ज़रूरत है। आज जरूरत है कि इनके समान्तर संस्थाओं का ढाँचा खड़ा करके लोगों को उनके बुनियादी सवालों पर लामबन्द किया जाये। आज हमें आम जनमानस के बीच फ़ासिस्टों की इन काली करतूतों की पोल खोलनी होगी। लोगों को काले क़ानूनों की सच्चाई बताने के लिए जनअभियान चलाना होगा। बड़े पैमाने पर लोगों को एकजुट करके राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा करने, काले क़ानूनों को रद्द करने और फ़ासीवाद के खिलाफ़ जनान्दोलन संगठित करना होगा।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन पर दिशा छात्र संगठन, आइसा, आईसीएम, एसएफआई समेत अन्य प्रगतिशील संगठनों की ओर से फ़ादर स्टेन स्वामी की फ़ासीवादी सरकार द्वारा की गयी न्यायिक हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। सभा में बात रखते हुए दिशा छात्र संगठन के धर्मराज ने बताया कि फ़ादर स्टेन स्वामी को फासीवादी सत्ता ने माओवादी पार्टी से जुड़े होने के फर्ज़ी आरोप लगाकर जेल में रखी रही। जनता के पक्ष में बहादुरी से खड़े बुद्धिजीवियों को फर्ज़ी आरोपों में जेल में ठूसा जा रहा है। न्यायालय का पूरा तंत्र भी मजबूती से फासिस्टों की सेवा में लगा हुआ है। वरवरा राव से लेकर फ़ादर स्टेन के मामले से यह बात स्पष्ट हो जाती है। वहीं देशभर में दंगे भड़काने वाले फ़ासिस्टों के चेले-चपाटी सड़को पर खुले घूम रहे है। कोरोना महामारी के दौरान सत्ता द्वारा देशस्तर पर रचे गए नरसंहार के समय न्यायालय की आँखों पर पट्टी बंधी थी। सबसे बड़ी बात यह है कि जनता के लिए लड़ने वाले इन लोगों से देश की बहुत छोटी आबादी परिचित है। जो लोग इनको जानते भी हैं, तो उसी तरह से जानते है जैसे सत्ता बताना चाहती है। ऐसे में जरूरी है कि फ़ासिस्टों द्वारा की गई इस हत्या के खिलाफ संयुक्त जन जारूकता कमेटियों का निर्माण किया जाय और लोगों को इनके असली संघर्ष से परिचित कराया जाय और सत्ताधरियों की खूनी साज़िश को बेनकाब किया जाय।

Facebook Twitter Instagram Linkedin Youtube