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Disha Students' Organization/ दिशा छात्र संगठन
Flee Not, Change The World !
Photos from Disha Students' Organization, AP/ దిశ విద్యార్థి సంఘం, ఆంధ్రప్రదేశ్'s post
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, इलाहाबाद के बाहर नॉर्मलाइजेशन और वन डे-वन शिफ़्ट परीक्षा को लेकर चल रहे आन्दोलन पर दिशा छात्र संगठन का बयाननॉर्मलाइजेशन ख़त्म करो!परीक्षाओं में पारदर्शिता बहाल करो!!ख़ाली पदों को तत्काल भरो!भर्तियों में लेट लतीफ़ी बन्द करो!!उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के ख़िलाफ़ यह आन्दोलन कम होते रोज़गार के अवसर, बढ़ते निजीकरण और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ छात्रों-युवाओं के आम ग़ुस्से की अभिव्यक्ति है!पीसीएस परीक्षा के सम्बन्ध में हमारी जीत केवल आंशिक जीत है, आयोग द्वारा आयोजित हर परीक्षा से नॉर्मलाइजेशन ख़त्म करने और रोज़गार की गारण्टी का हक़ मिलने तक हमें अपनी एकजुटता बनाये रखनी है!इलाहाबाद में प्रतियोगी छात्रों का शानदार संघर्ष लोक सेवा आयोग कार्यालय पर चल रहा है। छात्रों की माँग है कि आयोग द्वारा आयोजित होने वाली परीक्षाओं को एक दिन एवं एक शिफ़्ट में ही कराया जाये और परीक्षा परिणाम से नॉर्मलाइजेशन ख़त्म किया जाये। शुरू में आयोग ने अड़ियल रुख अपनाया और पुलिस के दम पर आन्दोलन को कुचलने की हर सम्भव कोशिश की। लेकिन आयोग का यह हथकण्डा उल्टा पड़ गया और फ़ासीवादी योगी सरकार, आयोग तथा पुलिस प्रशासन की इस कायराना हरक़त से छात्रों-नौजवानों की जुझारू एकता और मज़बूत हुई। अन्ततः 4 दिन के संघर्ष के बाद आयोग को घुटने टेकने को मजबूर होना पड़ा और पीसीएस परीक्षा को पूर्व की भाँति एक दिन और एक शिफ्ट में कराने की हमारी माँग मनानी पड़ी। लेकिन यह केवल आंशिक जीत है और साथ ही इस सरकार और आयोग द्वारा हमारे संघर्ष को कमजोर करने की एक चाल भी। क्योंकि इस तरह के फ़ैसले से आयोग पीसीएस और आरओ/एआरओ के छात्रों में फूट डालने की कोशिश कर रहा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् जैसे भाजपा का बगलबच्चा संगठन आयोग के इस फैसले का स्वागत कर छात्रों के बीच भ्रम फ़ैलाने की कोशिश कर रहा है और इस प्रक्रिया में भाजपा और आयोग के छात्र विरोधी और जन विरोधी चेहरे को बेनक़ाब होने से बचा रहा है। ऐसे दौर में हमें अपनी जुझारू एकजुटता को और मज़बूत करने की जरूरत है और ऐसे सभी संगठनों की हक़ीक़त को भी समझने की जरूरत है जो छात्र हितों की बात करते हुए प्रशासन और सरकार की दलाली करते हैं।दूसरी बात जो विशेष रूप से ध्यान देने की है वह यह कि अपनी इस तात्कालिक माँग के लिए लड़ते हुए भी हमें अपने दूरगामी लक्ष्यों को नहीं भूलना है। अगर हमारी सभी तात्कालिक माँगों को मान भी लिया जाय तब भी बेरोज़गारी का विकराल होता संकट नहीं टलने वाला है। ज़ाहिरा तौर पर यह आन्दोलन आयोग के नॉर्मलाइजेशन के फ़रमान के साथ शुरू हुआ लेकिन सच्चाई यह है कि यह रोज़गार के आम संकट के ख़िलाफ़ छात्रों-नौजवानों में उबल रहे गुस्से की अभिव्यक्ति है।वास्तव में 1991 में आर्थिक उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के दरवाजे वैश्विक पूँजी के लिए खोल दिये गये। जिसके बाद युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर कम होने लगे। 1995-2013 के बीच केन्द्र सरकार की नौकरियाँ 1.67 फ़ीसदी की दर से ख़त्म हुईं। इसी तरह कुछ ही सालों के भीतर रेलवे से लाखों पदों को ख़त्म किया जा चुका है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह गिरावट और तेज़ी से बढ़ी है पिछले दो सालों में 16 राज्यों मे कोई भर्ती ही नहीं हुई है। उत्तर प्रदेश में पिछले 6 सालों में प्राथमिक अध्यापकों की कोई भर्ती नहीं आयी। स्थिति यह है कि एक सीट के लिए औसतन 5000 फॉर्म भरे जा रहे हैं। इसके बाद शुरू होता है घूस-घोटाला-सिफ़ारिश-पेपर लीक कराने का सिलसिला। अंधेरगर्दी भरे इस तंत्र का लाभ नेताओं-अफ़सरों-ठेकेदारों या अमीरज़ादों के बेटों को ही मिल पाता है। आम घरों के बच्चे बस धूल चाटते रह जाते हैं। सच तो यह है कि बढ़ती बेरोज़गारी लूट पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था और सरकार की पूँजीपरस्त नीतियों की देन है। रोज़गार पैदा करने के लिए पैसा, संसाधन और मानवीय सम्पदा की जरूरत है। हमारे देश में इन तीनों चीज़ों की ही कोई कमी नहीं है। लेकिन भाजपा सरकार का लोगों की इन समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। इसीलिए वह जनता को जाति-धर्म, हिन्दू-मुसलमान के नाम पर आपस में ही बाँटने की कोशिश में लगी है ताकि लोग अपने इन असली सवालों पर एकजुट न हो सकें। 'बँटोगे तो कटोगे' जैसी बयानबाज़ी इसी की एक बानगी है। ऐसे में हमें आज उनकी इस साज़िश को नाकाम करना होगा। हमें 'नॉर्मलाइजेशन' के ख़िलाफ़ और 'वन डे-वन शिफ़्ट एग्ज़ाम' के लिए लड़ने के साथ ही अपने पूरे देश में सबको समान शिक्षा और सबको पक्के रोज़गार के हक़ के सवाल पर एक लम्बी लड़ाई की तैयारी में जुट जाना होगा। - दिशा छात्र संगठन की केन्द्रीय परिषद द्वारा जारी
इलाहाबाद में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सामने आन्दोलनरत छात्र अभी भी अपनी माँगों को लेकर डटे हुए हैं। संवेदनहीन प्रशासन इस मुद्दे पर छात्रों के हित में फ़ैसला लेने इधर-उधर की क़वायदें करने में जुटा हुआ है। लेकिन छात्रों ने भी ठान लिया है कि वह ‘वन एग्ज़ाम-वन शिफ़्ट’ से नीचे किसी भी माँग पर राज़ी नहीं होने वाले हैं। प्रशासन का कहना है कि छात्रों को ख़ुद ही इस मुद्दे पर समाधान खोजना चाहिए। ज़ाहिर है कि योगी सरकार से लेकर पूरी मशीनरी को अगर सारी समस्याओं का समाधान कराने, परीक्षा प्रणाली में पारदर्शिता सुनिश्चित करने से लेकर हर तरह की चीज़ों को छात्रों के ही मत्थे मढ़ देना है तो इससे यही नतीज़ा निकलता है कि इन्हें अपने पदों से इस्तीफ़ा देकर घर बैठ जाना चाहिए। दिशा छात्र संगठन सभी छात्रों-युवाओं और नागरिकों का आह्वान करता है कि वे आन्दोलनरत छात्रों के समर्थन में आगे आयें और बड़ी-से-बड़ी संख्या में आन्दोलन में शामिल हों।
इलाहाबाद में संघर्षरत प्रतियोगी छात्रों के समर्थन में आगे आओ! नॉर्मलाइज़ेशन ख़त्म करो!एक दिन-एक शिफ़्ट में परीक्षा कराओ!UPPSC द्वारा दो पाली में परीक्षा आयोजित करने के ख़िलाफ़ छात्रों के प्रतिरोध प्रदर्शन की एक ज़रूरी रिपोर्ट!