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सावित्रीबाई फुले के जन्म दिवस पर_____________________सावित्रीबाई फुले की लड़ाई को आगे बढ़ाओ!नयी शिक्षाबन्‍दी के विरोध में नि:शुल्‍क शिक्षा के लिए एकजुट हो!साथियो, आज सावित्रीबाई फुले का जन्म दिवस है। उनका जन्‍म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। भारत के इतिहास में सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले का अहम योगदान है। रूढ़िवादी-ब्राह्मणवादी ताकतों से वैर मोल लेकर पुणे के भिडे वाडा में सावित्रीबाई और ज्‍योतिराव फुले ने लड़कियों के लिए स्‍कूल खोला था। इस घटना का एक क्रान्तिकारी महत्‍व है। दलितों व स्त्रियों पर पीढ़ी दर पीढ़ी थोपे गये अनेक प्रतिबन्धों के साथ ही “शिक्षाबन्‍दी” के प्रतिबन्‍ध ने भी इनका बहुत नुकसान किया था। ज्‍योतिराव व सावित्रीबाई ने इसी कारण वंचितों की शिक्षा के लिए गम्भीर प्रयास शुरू किये। मनुस्‍मृति के अघोषित शिक्षाबन्‍दी क़ानून के विरूद्ध ये जोरदार विद्रोह था। इस संघर्ष के दौरान उन पर पत्‍थर, गोबर, मिट्टी तक फेंके गये पर सावित्रीबाई ने शिक्षा का महत्‍वपूर्ण कार्य बिना रूके किया। सावित्री बाई फुले के साथ इस कार्य में फातिमा शेख ने अमूल्य और अविस्मरणीय योगदान दिया था।अंग्रेजों ने भारत में जिस औपचारिक शिक्षा की शुरूआत की थी, उसका उद्देश्‍य “शरीर से भारतीय पर मन से अंग्रेज” क्‍लर्क पैदा करना था। इसलिए उन्‍होंने ना तो शिक्षा के व्‍यापक प्रसार पर बल दिया और ना ही तार्किक और वैज्ञानिक शिक्षा पर। ऐसे में फुले दम्पती ने जन-पहलकदमी को संगठित करके शिक्षा को आमजन तक पहुँचाया। ज्‍योतिराव-सावित्रीबाई ने सिर्फ शिक्षा के प्रसार पर ही नहीं बल्कि प्राथमिक शिक्षा में ही तार्किक और वैज्ञानिक शिक्षा पर भी जोर दिया। अन्धविश्‍वासों के विरूद्ध जनता को शिक्षित किया। आज जब ज्‍योतिषशास्‍त्र को फ़ासीवादी सरकार द्वारा शिक्षा का अंग बनाने की कोशिश हो रही है, तमाम सारी अतार्किक चीजें पाठ्यक्रमों में घोली जा रही हैं तो ऐसे में ज्‍योतिराव-सावित्री के संघर्ष का स्‍मरण करना ज़रूरी हो जाता है।ज्‍योतिराव और सावित्री ने शिक्षा का ये प्रोजेक्‍ट अंग्रेजी राज्‍यसत्‍ता पर निर्भर रहे बिना चलाया। चाहे वो लड़कियों की पाठशाला हो या प्रौढ़ साक्षरता पाठशाला, उन्‍होंने सिर्फ जनबल के दम पर इसे खड़ा किया और चलाया। अड़चनों व संकटों का सामना अत्‍यंत बहादुरी से किया। ज्‍योतिराव ये भी समझने लगे थे कि अंग्रेज राज्‍यसत्‍ता भी दलितों की कोई हमदर्द नहीं है। इसीलिए उन्‍होंने किसान का कोड़ा में लिखा था कि अगर अंग्रेज अफसरशाही व ब्राह्मण सामंतशाही की चमड़ी खुरच कर देखी जाये तो नीचे एक ही खून मिलेगा यानी कि दोनों में कोई अन्तर नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में इतना क्रान्तिकारी काम करने वाली सावित्रीबाई का जन्‍मदिवस ही असली शिक्षक दिवस होना चाहिए पर ये विडम्बना है कि आज एक ऐसे व्‍यक्ति का जन्‍मदिवस शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है जिस पर थीसिस चोरी का आरोप लगा और जो वर्ण व्‍यवस्‍था का समर्थक था।सावित्रीबाई के समय भी ज़्यादातर ग़रीब शिक्षा से वंचित थे और दलित उससे अतिवंचित थे। आज शिक्षा का पहले के मुकाबले ज़्यादा प्रसार हुआ है। पर फिर भी व्‍यापक ग़रीब आबादी आज भी वंचित है और दलित उसमें भी अतिवंचित हैं। स्‍वतन्त्रता के बाद राज्‍यसत्‍ता ने शिक्षा की पूरी ज़िम्‍मेदारी से हाथ ऊपर कर लिये और 1991 की निजीकरण, उदारीकरण की नीतियों के बाद तो उसे पूरी तरह बाजार में लाकर छोड़ दिया है। सरकारी स्‍कूलों की दुर्वस्‍था व निजी स्‍कूलों व विश्‍वविद्यालयों के मनमाने नियमों व अत्‍यधिक आर्थिक शोषण के कारण पहले ही दूर रही शिक्षा सामान्‍य ग़रीबों की क्षमता से बाहर चली गयी है। आज एक आम इन्सान अपने बच्‍चों को डॉक्‍टर या इंजीनियर बनाना तो सपने में भी नहीं सोच सकता। देश में साक्षरता स्‍वतन्त्रता के 71 साल बाद भी सिर्फ 64 प्रतिशत तक पहुँची है। आज शिक्षा और विशेषकर उच्‍च शिक्षा के दरवाजे सिर्फ अमीरों के लिए खुले हैं। शिक्षा की अत्‍यन्त सृजनात्‍मक क्रिया शिक्षण माफिया के लिए सोने के अण्‍डे देने वाली मुर्गी हो गयी है। अनिवार्य शिक्षा, छात्रवृत्तियाँ व आरक्षण आज खेत में खड़े बिजुका की तरह हो गये हैं जिसका फायदा आम मेहनतकश को नहीं मिलता या बहुत कम मिल पा रहा है। आज एक बार फ़िर से ग़रीबों व विशेषकर दलितों व अन्‍य वंचित तबकों से आने वालों पर नयी शिक्षाबन्‍दी लागू हो गयी है। आज सावित्रीबाई को याद करते हुए हमें ये विचार करना होगा कि उनके शुरू किये संघर्ष का वर्तमान में क्‍या हश्र हो रहा है? नयी शिक्षाबन्‍दी को तोड़ने के लिए सभी ग़रीबों-मेहनतकशों की एकजुटता का आह्वान कर सबके लिए नि:शुल्‍क शिक्षा का संघर्ष हमें आगे बढ़ाना होगा। सावित्रीबाई ने पहले खुद सीखा व सामाजिक सवालों पर एक क्रान्तिकारी अवस्थिति ली। ज्‍योतिराव की मृत्‍यु के बाद भी वो अन्तिम सांस तक जनता की सेवा करती रहीं। उनकी मृत्‍यु प्‍लेगग्रस्‍त लोगों की सेवा करते हुए हुई। अपना सम्‍पूर्ण जीवन मेहनतकशों, दलितों व स्त्रियों के लिए कुर्बान कर देने वाली ऐसी जुझारू महिला को हम क्रान्तिकारी सलाम करते हैं व उनके सपनों को आगे ले जाने का संकल्‍प लेते हैं।ब्राह्मणवाद मुर्दाबाद ! पूँजीवाद मुर्दाबाद !!सबको शिक्षा, सबको काम ! वरना होगी नींद हराम !!इन्क़लाब ज़िन्दाबाद !◾दिशा छात्र संगठन◾नौजवान भारत सभा ◾स्‍त्री मुक्ति लीग ... See MoreSee Less
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छात्रों का दमन नहीं सहेंगें! छात्रों का संघर्ष ज़िन्दाबाद! छात्र विरोधी भाजपा जदयू सरकार मुर्दाबाद! 70वीं बीपीएससी की पुनर्परीक्षा की तिथि घोषित करनी होगी! कल बिहार में जद यू भाजपा सरकार द्वारा अपने वाजिब माँगों के लिए आन्दोलन कर रहे छात्रों का बर्बर दमन किया गया। विदित हो कि 13 दिसम्बर को आयोजित 70वीं बीपीएससी प्राथमिक परीक्षा के दौरान सामने आयी अनियमितता के बाद से राज्य के छात्र परीक्षा को फ़िर से आयोजित कराने की माँग को लेकर आन्दोलनरत है। हालाँकि, क़रीब 17 दिन बीत जाने के बावजूद भी न तो आयोग और न ही राज्य सरकार ने छात्रों की माँगों को सुना है। दो दिन पहले जब छात्रों ने आयोग के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया और परीक्षा के मामले पर आयोग से वार्ता की माँग की, तब छात्रों की बातों को सुनने के बजाय उन पर बर्बर लाठियाँ बरसायी गयी। छात्राओं तक को बुरी तरह से पीटा गया। कल जब हज़ारों की संख्या में छात्र पटना के गाँधी मैदान में अपनी माँगों को लेकर एकत्र होने लगे तब राज्य सरकार के इशारों पर पुलिस द्वारा बर्बर दमन किया गया। छात्रों के साथ पुलिस ऐसे पेश आयी, जैसे वे दंगाई हो। छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया, उन पर वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया गया। सुशासन की सरकार होने का दावा करने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्फ़ सुशासन कुमार और उनके सहयोगी भाजपा का छात्र विरोधी रवैया समय - समय पर सामने आता रहा है। इनके चाल चेहरे चरित्र की सच्चाई पहले ही हम छात्रों के समक्ष आ चुकी है। इसके साथ ही ख़ुद को छात्रों का हितैषी होने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव सरीखे चुनावबाज़ पार्टियों के अवसरवादी नेता, छात्रों के आन्दोलन को हाईजैक कर अपनी चुनावी रोटियाँ सेंकना चाहते हैं। हम छात्रों को इनसे भी सावधान रहने की ज़रूरत है।दिशा छात्र संगठन राज्य सरकार द्वारा छात्रों पर किये गये बर्बर दमनात्मक कार्रवाई की निंदा करता है। इसके साथ ही यह माँग करता है कि 70वीं बीपीएससी परीक्षा में सामने आयी अनियमितता के मसले पर सरकार द्वारा छात्रों की माँगों को मानते हुए 13 दिसम्बर को आयोजित प्राथमिक परीक्षा को रद्द करते हुए, पुनर्परीक्षा की तिथि घोषित की जाये। लेकिन, दोस्तों हमें यह भी समझना होगा कि आज देशभर में रोज़गार का संकट गहरा हो चुका है। नवउदारवाद की नीतियों के लागू होने के बाद से पक्के रोज़गार के अवसरों में गिरावट जारी है। सत्ता में फ़ासीवादी भाजपा सरकार के काबिज़ होने के बाद से रोज़गार का संकट पहले से कहीं ज्यादा तीव्र हुआ है।अत: केवल तात्कालिक माँगों के लिए संघर्ष करने तक सीमित रहने से बेरोज़गारी की समस्या को हल नहीं किया जा सकता है। इसलिए हमें अपनी तात्कालिक माँगो पर लड़ने के साथ-साथ रोज़गार के अधिकार की माँग के लिए दीर्घकालिक संघर्ष हेतु संगठित होना होगा। ... See MoreSee Less
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फ़ासीवादी भाजपा सरकार के शासनकाल में जिस तरीक़े से छात्रों-युवाओं पर कहर बरपाया जा रहा है वह अपने आप में अभूतपूर्व है। इस सरकार ने छात्रों-युवाओं के सपनों और उनके भविष्य को भयानक रूप से कुचलने का काम किया है। इसकी बानगी आये दिन हम देखते रहते हैं। छात्रों की आत्महत्या की ख़बरें लगातार आती रहती हैं। अभी हाल ही में बिहार के पटना में BPSC परीक्षा की तैयारी कर रहे सोनू नाम के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। BPSC की परीक्षा में धाँधली की ख़बर के बाद से ही वह काफ़ी परेशान था और अन्ततः उसने आत्महत्या कर ली। ग़ौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही BPSC परीक्षा में सामान्यीकरण (Normalization) की प्रक्रिया के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर छात्र सड़कों पे उतरे थे। प्रशासन ने छात्रों पर लाठी-डण्डे बरसाकर आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया, लेकिन छात्रों के संघर्ष के आगे सरकार को झुकना पड़ा और छात्रों की माँगें मान ली गयी। लेकिन परीक्षा होने के बाद ही पटना के बापू परीक्षा केन्द्र पर छात्रों ने पेपर लीक का आरोप लगाया। छात्रों के काफ़ी हंगामे के बाद बिहार लोक सेवा आयोग ने बापू परीक्षा केन्द्र पर 12 हज़ार अभियर्थियों के लिए दोबारा परीक्षा कराने का आदेश दिया। लेकिन छात्रों का कहना है कि यह तो सीधे तौर पर भेदभाव है, अगर परीक्षा का पर्चा लीक हुआ है तो पूरी परीक्षा को दोबारा से करायी जाए। लेकिन सरकार और लोक सेवा आयोग छात्रों की माँग को मानने के लिए तैयार नहीं है। इस वजह से बड़े पैमाने पर छात्र सड़कों पर फिर से आन्दोलित हैं। बिहार की जदयू और भाजपा की सरकार छात्रों के शान्तिपूर्ण आन्दोलन का बेहद बर्बरतापूर्ण दमन कर रही है। दरअसल इस देश में छात्रों-युवाओं की ज़िन्दगी बेहद सस्ती हो गयी है। आईसी-3 सम्मेलन की रिपोर्ट बताती है कि इस देश में छात्रों-युवाओं की आत्महत्या उनकी जनसंख्या वृद्धि दर से ज़्यादा हो गयी है। हर 42 मिनट में 1 छात्र इस देश में आत्महत्या करता है। असल में ये आत्महत्याएँ नहीं बल्कि सांस्थानिक हत्याएँ हैं। 2014 में 2 करोड़ नौकरी का वायदा करके सत्ता में आयी मोदी सरकार ने छात्रों-युवाओं से पक्के रोज़गार का हक छीनने का काम किया है। तमाम सरकारी विभागों में पदों को संख्या ही घटायी जा रही है और जो पद हैं उसमें भी सालों से भर्तियाँ नहीं आ रही हैं। अगर ऊँट के मुँह में जीरे के समान भर्तियाँ आ भी रही हैं तो परीक्षा में धाँधली और पेपर लीक एक आम घटना बन चुकी है। अभी रेलवे के छात्र भी जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल रेलवे में आख़िरी बार भर्ती 2019 में ही आयी थी। 5 सालों बाद 2024 में भर्ती आयी भी तो केवल 32,000 पदों पर जबकि रेलवे में 2 लाख 32 हज़ार पद खाली हैं। एक तरफ़ कर्मचारियों की भारी कमी है और दूसरी तरफ़ नौजवान बेरोज़गार बैठे हुए हैं। लेकिन सरकार नौकरी देने के बजाय सारे सरकारी विभागों को औने-पौने दामों पर अपने आका पूँजीपतियों को बेचने में लगी है। अभी बिजली जैसे विभागों को भी निजी हाथों में सौंपने का इन्तज़ाम किया जा रहा है। तमाम परीक्षाओं में धाँधली के ख़िलाफ़ छात्रों का हुजूम सड़कों पर उतर रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में छात्र अपनी माँगों को लेकर आन्दोलनरत हैं। लेकिन आज ज़रूरत है कि इन तमाम आन्दोलनों को एकजुट किया जाए और पूरे देश भर से छात्र-युवा संगठित हों और बेरोज़गारी के सवाल को लेकर एक देशव्यापी जूझारू जनआन्दोलन खड़ा किया जाये तभी हम इस लड़ाई को एक मुकम्मल अंजाम तक पहुँचा सकते हैं। ... See MoreSee Less
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छात्रों पर दमन नहीं सहेंगे! छात्र एकता ज़िन्दाबाद! पिछले दो सप्ताह से राज्य के प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र आयोग के समक्ष प्राथमिक परीक्षा को दुबारा से कराने की मॉंग उठा रहे हैं। पटना के गर्दनीबाग में अपनी माँगों को लेकर ये तमाम छात्र धरने पर बैठे हुए थे, परन्तु न तो आयोग और न ही सरकार ने छात्रों की माँगों को कोई तवज्जो दी। सरकार और आयोग के इस रवैये से तंग आकर कल छात्रों ने बेली रोड स्थित आयोग के दफ़्तर के समक्ष प्रदर्शन किया। लेकिन, छात्रों के आयोग के कार्यालय के समक्ष पहुँचते ही, उनपर पुलिस प्रशासन द्वारा बर्बर लाठीचार्ज किया गया। बर्बरता की हद इतनी थी कि छात्राओं तक को नहीं छोड़ा गया, उन पर भी लाठियां बरसाई गयी। वीडियो फुटेज में भी यह दिख रहा है कि पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा छात्राओं पर लाठियां बरसाई जा रही है। विदित हो कि 13 दिसम्बर को आयोजित बीपीएससी प्राथमिक परीक्षा के दौरान बापू परीक्षा केंद्र में परीक्षा के दौरान अनियमितता का मामला सामने आया। इस घटना के बाद से ही छात्र यह माँग कर रहे हैं कि 13 दिसम्बर की परीक्षा को रद्द कर सबकी परीक्षा दुबारा से ली जाए। परन्तु, आयोग ने छात्रों की माँग को नकारते हुए केवल बापू परीक्षा केंद्र की परीक्षा दुबारा लेने की बात कही है। राज्य में सत्ता में मौजूद जदयू-भाजपा की सरकार इस कदर सत्ता के नशे में चूर है कि छात्रों युवाओं की जयाज़ माँगो को सुनने के बजाय उनका दमन कर रही है। विगत कुछ समय से यह परिपाटी के रूप में स्थापित हो चुका है कि छात्र-युवा अपने हक़ के लिए सड़क पर उतरे, तो उनपर लाठियाँ बरसाई जाए। दिशा छात्र संगठन राज्य सरकार के इस छात्र विरोधी कृत्य की निंदा करता है। तथा इस घटनाक्रम के प्रतिवाद में बिहार के छात्रों द्वारा 27/12/2024 को बुलाये गये बिहार बंद का समर्थन करता है। इसके साथ ही यह माँग करता है कि संघर्षरत छात्रों के साथ आयोग व राज्य सरकार वार्ता करने को तैयार हो तथा छात्रों की माँगो का संज्ञान लेते हुए त्वरित कार्रवाई करे।हालांकि, हम छात्रों को यह भी समझना होगा आज देश भर में रोज़गार के संकट के कारण ही, छात्रों को अपने रोज़गार की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। रोज़गार के इस आम संकट की वजह पूंजीपरस्त नीतियां है। यह संकट मोदी सरकार की नीतियों के कारण और तीव्र हुआ है। इसलिए इन तात्कालिक माँगों के लिए लड़ते हुए भी छात्रों को अपने दूरगामी लक्ष्यों को नहीं भूलना चाहिए। आज की तारीख़ में छात्रों का दूरगामी लक्ष्य होना चाहिए कि देश के स्तर पर रोज़गार के अधिकार के लिए संगठित हुआ जाए। ... See MoreSee Less
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