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Disha Students' Organization/ दिशा छात्र संगठन
Flee Not, Change The World !
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव 2025 में अध्यक्ष पद के लिए दिशा छात्र संगठन से योगेश मीणा को क्यों चुने?![]()
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव 2023 में हमारा घोषणापत्रः![]()
1. छात्रसंघ के ज़रिये नयी शिक्षा नीति 2020 वापस करवाने, FYUP रद्द करने और C.B.C.S. की व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए संघर्ष करेंगे।![]()
2. हम वायदा करते हैं कि छात्रसंघ में जीत कर आने पर समूचे हिसाब को पारदर्शी एवं सार्वजनिक करेंगे। चूंकि छात्रसंघ को मिलने वाला फण्ड आम छात्रों का पैसा है इसीलिए उन्हें इसका पूरा हिसाब-किताब जानने का अधिकार है। अगर दिशा छात्र संगठन छात्रसंघ चुनाव में जीतकर आता है तो वह छात्रसंघ के फण्ड को सार्वजनिक और पारदर्शी करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।![]()
3. हम कैम्पस में लगातार सिकुड़ते जा रहे जनवादी स्पेस को बहाल करने इसे पुलिस की छावनी में तब्दील होने से रोकने के लिए संघर्ष करेंगे।![]()
4. दिल्ली विश्वविद्यालय के सभी रिक्त शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक पदों पर तत्काल भर्ती के लिए संघर्ष करेंगे।![]()
5. हम इण्टरनल असेसमेण्ट स्कीम और मैण्डेटरी अटेण्डेंस पॉलिसी को ख़त्म करने के लिए संघर्ष करेंगे।![]()
6. दिल्ली विश्वविद्यालय में हॉस्टल की संख्या बढ़ाई जाये। उपलब्ध हॉस्टलों की वार्षिक फ़ीस बढ़ोतरी को बन्द कराने, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अनुशंसा पत्र जारी करके कैम्पस के आसपास के रिहायशी इलाकों में रेण्ट कण्ट्रोल एक्ट का पालन कराने के लिए संघर्ष करेंगे।![]()
धनबल बाहुबल पर चोट करो।
दिशा को वोट करो ।
छात्र जब भी जागा है,
इतिहास ने करवट बदली है ।![]()
#DUSU #DUSU2025 #vote4disha #StudentElection
#dishastudentsorganization #du
Choose an Independent Revolutionary Alternative in the DUSU Elections ![]()
YOGESH MEENA
For DUSU President ![]()
#dishastudentsorganization #Disha #yogeshfordusu #yogeshdisha #delhiuniversity #StudentUnity #northcampus
CHOOSE AN INDEPENDENT ALTERNATIVE!
CHOOSE DISHA STUDENTS' ORGANIZATION!
VOTE YOGESH MEENA FOR DUSU PRESIDENT!![]()
A class-to-class campaign was conducted in the Campus Law Center. ![]()
Students at CLC appealed to reclaim the DUSU, the right to which had been won after immense struggles. The importance and necessity of an independent revolutionary student organization was also explained to the students. Moreover, it was emphasized that by only being organized under the banner of Disha - an independent revolutionary student organization - students can wage consistent struggles against every attack on their collective demands.![]()
The reality of the fascist ABVP, Congress' NSUI, and opportunist AISA-SFI was also exposed before the students. Students were asked to not only mobilize the correct political position, but also to expose and counter organizations like ABVP, NSUI, AISA-SFI.![]()
#dishastudentsorganization #yogeshfordusu #yogeshdisha #DUSU #delhiuniversity #elections #StudentUnity
Yogesh Meena for DUSU President!!![]()
#Disha #dishastudentsorganization #students #votefordisha #DUSU #du #DUSU2025
अनुराग ठाकुर जैसे "संस्कृति रक्षकों" की असलियत को पहचानो!
मिथकों को यथार्थ बनाकर पेश करना संघी-भाजपाइयों की जन्मजात फ़ितरत है!
तर्क-विज्ञान-विवेक के विरोधी हमारी प्रगतिशील विरासत के वाहक नहीं हो सकते!![]()
भारतीय ज्ञान परम्परा के "रक्षक" होने का दावा करने वाले भाजपाइयों के ख़ुद के काले कारनामे ही इनके ढोंग को उजागर करते रहते हैं। लेकिन कभी-कभी यह पाखण्ड ये अपने मुखारविन्द से ही प्रदर्शित कर देते हैं। हाल ही में ‘गोली मारो सालों को’ फेम नफरती चिण्टू केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के एक सरकारी स्कूल में बच्चों से सवाल-जवाब करते हुए पाये गये। बच्चों से जब इन्होंने पूछा कि दुनिया का पहला अन्तरिक्ष यात्री कौन था तो अधिकतर बच्चों की ओर से नील आर्मस्ट्रांग का नाम लिया गया। अब होना तो यह चाहिए था कि ये बच्चों के जवाब को सुधारते हुए यूरी गगारिन का नाम लेते किन्तु इन्होंने दुनिया के पहले अन्तरिक्ष यात्री के तौर पर पवन पुत्र हनुमान का नाम उछाल दिया। यही नहीं इन्होंने बच्चों से अंग्रेज़ों ने जो दिखाया है वहीं तक सीमित न रहकर अपनी हज़ारों साल पुरानी ज्ञान परम्परा, संस्कृति और वेदों से सीखने की दुहाई दी। अनुराग ठाकुर मिथकीय ज्ञान की घुट्टी को भारतीय ज्ञान परम्परा कहकर सरकारी स्कूल के बच्चों को पिलाने को आतुर दिखाई दिये। क्या इन्होंने यही घुट्टी भाजपा के उन नौनिहालों को भी पिलाने की ज़हमत उठायी जो दुनिया के महँगे और नामी-गिरामी कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में तथाकथित अंग्रेज़ी ज्ञान परम्परा में अपना “कैरियर सेट करने” में लगे हैं? या अपने ख़ुद के बच्चों को महँगे अंग्रेज़ी मीडियम स्कूलों से हटाकर कहीं किसी गुरु की शरण में भेजा? इन्होंने ‘इसरो’ को अपना सुझाव क्यों नहीं दिया कि आधुनिक विज्ञान द्वारा उद्घाटित किये गये नियमों को छोड़कर हनुमान जी के पदचिन्हों पर चलो और अन्तरिक्ष फ़तह कर लो। दुनिया तो मंगल तक जाने की बात कर रही है क्यों न हम एक चक्कर सूरज का ही मार आयें क्योंकि हनुमान जी तो सूरज को निगल ही गये थे! अनुराग ठाकुर ने हमारे ‘नॉनबायलोजिकल’ परिधानमंत्री मोदी को क्यों नहीं कहा कि 550 करोड़ रुपये फूँककर तथाकथित अंग्रेज़ी ज्ञान परम्परा द्वारा संचालित ‘नासा’ के ‘एग्ज़ीयम-4’ वाणिज्यिक मिशन के तहत शुभांशु शुक्ला को अन्तर्राष्ट्रीय अन्तरिक्ष स्टेशन में भेजने की ज़रूरत ही क्या थी? जबकि शुक्ला जी हनुमान जी से सीखते हुए फ़्री में ही अन्तरिक्ष क्या हमारी आकाशगंगा का ही एक दौरा करके आ सकते थे! ![]()
दुनिया की हरेक संस्कृति और सभ्यता के प्राचीन या धार्मिक या पौराणिक साहित्य में हमें अनायास ही ऐसे चरित्र मिल जाते हैं जिनकी क्षमताएँ मानवीय पहुँच से बहुत-बहुत ज़्यादा होती हैं। इसका सीधा सा मतलब यही है कि उस दौरान हमारे पूर्वज प्रकृति की शक्तियों के सामने असहाय थे। इनपर क़ाबू पाने का उनके पास कोई वैज्ञानिक अनुसन्धान तो था नहीं इसलिए वे इन्हें अपनी कल्पनाओं में विजित करते थे। कहानियों की रचना करना और अतिशयोक्ति का इस्तेमाल करते हुए मानवों एवं प्राणियों में उन गुणों को आरोपित करना जो स्वयं हमारे पूर्वजों की भौतिक सीमाओं से बाहर की बात थी उनकी कल्पनशीलता को ही दर्शाता है। प्राचीन साहित्य में वर्णित मिथकों और रूपकों को यथार्थ बनाकर पेश करने का काम कूढ़मगज़ पुरातनपन्थी अचेतन तौर पर करते हैं और साम्प्रदायिक फ़ासीवादी भाजपाई-संघी व “सनातन” का चोला ओढ़े हुए तमाम कुटिल नराधम सचेतन तौर पर करते हैं। ये स्वयं तो दुनिया भर के एशोआराम में गोते लगाते हैं लेकिन जनता का ध्यान उसके बर्बाद वर्तमान और अनिश्चित भविष्य से भटकाने हेतु उसके हाथ में तथाकथित गौरवशाली भूतकाल पर गर्व करने के लिए मिथकों का झुनझुना पकड़ा देना चाहते हैं। ऐसी अवैज्ञानिक और बहकी-बहकी बातें करने वाले अनुराग ठाकुर कोई पहले व्यक्ति नहीं हैं। तमाम भाजपाई-जनसंघी-संघी, तथाकथित सनातनी-धर्मगुरु-कथा वाचक और हिन्दुओं के भाँति-भाँति के ठेकेदार भी इसी खरणे (नस्ल) के हैं। पी.एन. ओक और दीनानाथ बत्रा के कुपोषित बुद्धि चेले अनुराग ठाकुर और इस जैसे लोग भारतीय ज्ञान परम्परा के नाम पर केवल और केवल पखण्ड करते हैं ताकि धर्म-संस्कृति-मिथकों के सहारे बच्चों और बड़ों को बरगलाया जा सके। हिन्दू धर्म के मिथकों के सहारे ये खुद को हिन्दू हितरक्षक साबित करना चाहते हैं जबकि इनका काम अज्ञान-अविवेक फैलाकर स्वयं हिन्दुओं को ही कूपमण्डूक बनाने का होता है और असल में ये हिन्दुओं के रक्षक नहीं बल्कि भक्षक हैं! यह इसी से साबित होता है कि शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार, आवास जैसे मसले इनके एजेण्डे में कभी भी नहीं होते हैं। ![]()
भारत की ही नहीं बल्कि कहीं की भी कोई भी संस्कृति और सभ्यता एकांगी नहीं होती है कि वह गुणों या दोषों से बिल्कुल मुक्त हो। हरेक सभ्यता अपनी सहोदर सभ्यताओं से मानवीय सारतत्त्व का या कहें कि कला, विज्ञान, तकनीक, दर्शन आदि के स्तर पर लेन-देन करती ही करती है। इस बात को प्राचीन समय से लेकर आधुनिक काल तक के इतिहास में पुष्टि मिलती है। ज्ञान-विज्ञान या इनकी किसी भी शाखा में पैदा हुए नये अनुसन्धानों को किसी देश और राष्ट्रीयता की सीमाओं में बाँधकर नहीं रखा जा सकता है। ज्ञान-विज्ञान का तो चरित्र ही सार्वभौमिक क़िस्म का होता है। अलग-अलग देशों की ऐतिहासिक परिस्थितियों और समाज विकास की भिन्न मंजिलों के चलते यह पैदा कहीं भी हो किन्तु यह पूरी मानवता की धरोहर होता है और मानवीय सारतत्त्व की ही अभिव्यक्ति होता है। इसीलिए ज्ञान-विज्ञान को अंग्रेज़ी, भारतीय, चीनी, अफ़्रीकी जैसे खाँचों में बाँटना ही अपने आप में बेमानी हो जाता है। मानव समाजों में प्रगतिशील और प्रतिगामी ताक़तों के बीच टकराव भी सदा से रहा है। हमारे यहाँ के महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों, बौद्ध जातक कथाओं, उपनिषदों के आख्यानों और पौराणिक कहानियों में भी हमें इन टकरावों की प्रतिध्वनि सुनाई दे जाती है। दरअसल प्राचीन भारत के आर्यभट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य, बोधायन जैसे महान खगोलविद व गणितज्ञ; कपिल, कणाद जैसे दार्शनिक; चरक, सुश्रुत जैसे चिकित्सक; पाणिनी जैसे भाषावैज्ञानिक; नागार्जुन जैसे रसायनशास्त्री; चार्वाकों व लोकायतों जैसे जनपक्षधर भौतिकवादी दार्शनिक निश्चित तौर पर अपने समयों में तर्क और विवेक की मशाल लेकर चलने वाले वैज्ञानिक थे। उन्होंने अपने-अपने वक़्त में रूढ़िवादी और प्रतिगामी तत्त्वों का डटकर मुक़ाबला किया था। इनमें से कइयों को अपने प्रयोग छिपकर करने पड़ते थे और निष्कर्षों तक पहुँचकर भी उन्हें सामने लाने में सही वक़्त का इन्तज़ार करना पड़ता था। जिन पुरोगामी ताक़तों से हमारे ये महान वैज्ञानिक पूर्वज लड़ रहे थे आज के समय में संघी-भाजपाई और तमाम तरह के रूढ़िवादी व पुरातनपन्थी असल में उन्हीं पुरोगामी ताक़तों का प्रतिनिधित्व करते हैं। नरेन्द्र दाभोलकर, डॉ. एम. एम. कलबुर्गी, गोविन्द पानसरे जैसे आज के तर्कवादियों और विचारकों की हत्या किस तरह के लोगों ने की थी और कौन उन हत्यारों का बचाव कर रहा है यह बात किसी से भी छुपी हुई नहीं है! ![]()
आज कौन है जो बच्चों के पाठ्यक्रम से वैज्ञानिक-तार्किक विचारों और इतिहास की सच्चइयों को गायब कर रहा है! कौन है जो ज्ञान और विवेक के सामने जुगुप्सित और निर्लज्ज क़िस्म का अट्टहास करता हुआ डोल रहा है! इसका जवाब एक ही है और वह है भाजपा व संघपरिवार के लोग और इनसे प्रश्रय पा रही भाँति-भाँति की सामाजिक खरपतवार। हमारे देश की भौतिकवादी, प्रगतिशील और वैज्ञानिक विरासत देश की मेहनतकश जनता की धरोहर है। देश के छात्रों-युवाओं को चाहिए वे अपने देश के इतिहास और दर्शन की समृद्ध विरासत को आलोचनात्मक विवेक के साथ जानें और समझें तथा आम जनता को भी इससे परिचित करायें। इसके लिए हम देवी प्रसाद चट्टोपाध्याय, दामोदर धर्मानन्द कोसम्बी, राहुल सांकृत्यायन, राम शरण शर्मा, राधामोहन गोकुलजी, गुणाकार मुले आदि का लेखन पढ़ सकते हैं। अपने अतीत के बारे में वस्तुगत ज्ञान हासिल करके ही हम इसके “रक्षक” बने घूम रहे पाखण्डियों का भण्डाफोड़ कर सकते हैं और इसे अपनाने के नाम पर इसपर कीचड़ उछाल रहे संघी फ़ासीवादियों की साज़िशों को नाकाम कर सकते हैं। मिथकों को यथार्थ बनाकर पेश करके अपना उल्लू सीधा करने वाले अनुराग ठाकुर जैसे लोग न केवल जनता की तर्क बुद्धि और इसके आलोचनात्मक विवेक को हरते हैं बल्कि ये हमारी प्रगतिशील विरासत को भी कलंकित करने का काम करते हैं। इन पाखण्डियों की असलियत को जितना जल्दी समझ लिया जाये उतना ही बेहतर होगा।![]()
- दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा का साझा बयान