ज्योति राव फुले की विरासत को याद करो!जातिवाद, पितृसत्ता हो बर्बाद!!ज्योति राव फुले(11 अप्रैल 1827 - 28 नवंबर 1890)आज जातिवाद-विरोधी, स्त्री शिक्षा के लिए संघर्ष, बाल विवाह, विधवाओं के केश काटने और अन्य पितृसत्तात्मक कुरीतियों व प्रथाओं के ख़िलाफ़ लड़ने वाले समाज सुधारक ज्योति राव फुले का जन्मदिवस है। उनके जीवन को याद करना और उनके संघर्षों से प्रेरणा लेना, आज की जातिवादी व पितृसत्तात्मक सोच के ख़िलाफ़ लड़ने का ईंधन प्रदान करता है।ज्योति राव फुले का संक्षिप्त परिचयज्योति राव फुले का जन्म पुणे के भिड़ेवाड़ा में हुआ था। एक ऐसे कठिन दौर में, जब शिक्षा के आगे जाति की दीवार खड़ी थी और महिलाओं के लिए शिक्षा प्राप्त करना लगभग असंभव था, ज्योति राव फुले ने अपने संघर्षों से एक मिसाल कायम की। इस कार्य में उन्हें उनकी जीवनसाथी सावित्रीबाई फुले का सहयोग मिला। स्त्री शिक्षा के लिए सावित्रीबाई फुले के साथ फातिमा शेख़ ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हर तरह के उत्पीड़न को सहकर भी ज्योतिराव, सावित्रीबाई और फातिमा शेख़ ने यह संघर्ष नहीं छोड़ा।ज्योति राव फुले ने विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए न केवल ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, बल्कि विधवाओं के बाल कटने से रोकने के लिए नाइयों की हड़ताल भी आयोजित की। ज्योति राव फुले ने बाल विवाह का विरोध किया और विधवाओं के बच्चों के पालन-पोषण जैसे अनेक सामाजिक सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाई। स्त्री मुक्ति और जाति उन्मूलन के संघर्ष में फुले दंपति का योगदान अतुलनीय है।सामाजिक परिवर्तन के लिए ज्योतिराव फुले सरकार की प्रतीक्षा नहीं करते रहे। उन्होंने उपलब्ध साधनों से ही अपना संघर्ष शुरू किया। शुरुआत में वे अंग्रेज़ी राज के प्रशंसक थे, लेकिन बाद में उन्होंने अंग्रेज़ी शासन की क्रूर सच्चाई को पहचान लिया। इसीलिए उन्होंने "किसान का कोड़ा" में लिखा:"अगर अंग्रेज़ अफ़सरशाही और ब्राह्मण सामंतशाही की चमड़ी खुरचकर देखी जाए, तो नीचे एक ही ख़ून मिलेगा—यानी दोनों में कोई अंतर नहीं है।"ज्योति राव फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, और उनके संघर्षों के परिणामस्वरूप सरकार ने 'एग्रीकल्चर एक्ट' पारित किया। बंबई की पहली ट्रेड यूनियन 'बंबई मिल्स हैंड्स एसोसिएशन' का निर्माण ज्योतिराव के मित्र नारायण मेघाजी लोखंडे ने किया था। जाति के ख़िलाफ़ संघर्ष करते हुए, ज्योतिराव ने पुरोहित-रहित विवाह की परंपरा शुरू की, जिसे बॉम्बे हाईकोर्ट ने मान्यता दी।ज्योतिराव फुले को अछूतों के दो बच्चों का पालन-पोषण करने के "अपराध" में जाति से बहिष्कृत कर दिया गया था। लेकिन उनका संघर्ष जानलेवा हमलों, द्वेष और सामाजिक-आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद नहीं रुका। आज हमें ज्योतिराव के संघर्षों से प्रेरणा लेते हुए, उनके द्वारा शुरू किए गए आंदोलन को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है। ... See MoreSee Less
"भागो नहीं, दुनिया को बदलो!" का नारा देने वाले महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन का आज जन्मदिवस है। राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान अंग्रेज़ों और ज़मींदारों के ख़िलाफ़ ही नहीं, बल्कि देश की आज़ादी के बाद भी राहुल जनता के पक्ष में हर शोषण, दमन और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे। साथ ही जनता के बीच मौजूद रूढ़िवाद, पाखण्ड और समाज को पीछे ले जाने वाली पुरातनपन्थी मूल्य-मान्यताओं के ख़िलाफ़ भी उन्होंने संघर्ष किया। विभिन्न विषयों पर विद्वतापूर्ण पकड़ रखने और 30 से अधिक भाषाओं के ज्ञाता होने के बावजूद उन्होंने अपने ज्ञान का इस्तेमाल जनता के पक्ष में किया। आज जब फ़ासीवादी दौर में तर्कणा और वैज्ञानिक चिन्तन पर हर दिन नये-नये हमले हो रहे हैं, राहुल सांकृत्यायन की जाति, साम्प्रदायिकता और अन्धराष्ट्रवाद समेत हर तरह के प्रतिक्रियावादी विचारों के ख़िलाफ़ लेखन और संघर्ष की विरासत इस अंधेरे दौर से लड़ने के लिए हमारे सामने एक मशाल की तरह है। ... See MoreSee Less
हिन्दी के लिए नीचे स्क्रॉल करें...Long live the historic legacy of April 8th!On April 8, 1929, on behalf of the Hindustan Socialist Republican Association (H.S.R.A.), Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt threw bombs in the Assembly Hall, "to make the deaf British rulers hear". The echo of this bomb explosion was heard around the world.The purpose of the bomb explosion was to protest against and expose repressive laws like the "Trade Disputes Bill" and the "Public Safety Bill," as well as the dictatorship of British rule.Along with the bomb explosion in the Assembly Hall, the revolutionaries also distributed a leaflet there, which we are attaching here:Notice of Hindustan Socialist Republican Association"It takes a loud voice to make the deaf hear." With these immortal words uttered on a similar occasion by Valliant, a French anarchist martyr, do we strongly justify this action of ours.Without repeating the humiliating history of the past ten years of the working of the reforms and without mentioning the insults hurled down on the head of the Indian nation through this House, the so-called Indian Parliament, we see that this time again, while the people expecting some more crumbs of reforms from the Simon Commission, are ever quarrelling over the distribution of the expected bones, the Govt. is thrusting upon us new repressive measures like those of the Public Safety and Trade Disputes Bill, while reserving the Press Sedition Bill for the next session. The indiscriminate arrests of labour leaders working in the open field clearly indicate whither the wind blows.In these extremely provocative circumstances, the Hindustan Socialist Republican Association, in all seriousness, realising the full responsibility, had decided and ordered its army to do this particular action, so that a stop be put to this humiliating farce and to let the alien bureaucratic exploiters do what they wish, but to make them come before the public eye in their naked form.Let the representatives of the people return to their constituencies and prepare the masses for the coming revolution. And let the Government know that, while protesting against the Public Safety and Trade Disputes Bills and the callous murder of Lala Lajpat Rai on behalf of the helpless Indian masses, we want to emphasise the lesson often repeated by history that it is easy to kill individuals but you cannot kill the ideas. Great empires crumbled but the ideas survived. Bourbons and Czars fell while the revolution marched ahead triumphantly.We are sorry to admit that we who attach so great a sanctity to human life, who dream of a glorious future, when man will be enjoying perfect peace and full liberty, have been forced to shed human blood. But the sacrifice of individuals at the altar of the great revolution that will bring freedom to all, rendering the exploitation of man by man impossible, is inevitable.Long Live The Revolution!Sd/_BalrajCommander-in-Chief-----------------------------------In the statement given by Bhagat Singh and Batukeshwar Dutt in the Delhi Sessions Judge’s court on June 6, 1929, they said:"By revolution, we mean a complete change in the present system, which is based on the exploitation of the labor of the common masses by a handful of parasitic classes, and is rooted in injustice."Remembering the words of our martyrs today, we need to unite the common students-youth and working masses against all forms of exploitation and oppression, and struggle for the creation of a truly egalitarian society....Disha Students' Organization8 अप्रैल की ऐतिहासिक विरासत ज़िन्दाबाद !8 अप्रैल 1929 को 'एच.एस.आर.ए.' की ओर से भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 'असेम्बली हॉल' में बम फेंककर बहरे अंग्रेज हुक्मरानों के कानों में ऐसा धमाका किया था जिसकी गूँज पूरी दुनिया में सुनी गयी। बम धमाके का मक़सद 'ट्रेड डिस्प्यूट बिल' और 'पब्लिक सेफ़्टी बिल' जैसे दमनकारी क़ानूनों व अंग्रेजी राज की तानाशाही का विरोध करना और इसे बेपर्द करना था। असेम्बली हॉल में बम धमाके के साथ ही क्रान्तिकारियों ने वहाँ एक पर्चा भी बाँटा जिसका हिन्दी अनुवाद निम्नलिखित है :-‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना’सूचना“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज़ की आवश्यकता होती है”, प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियाँ के ये अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं।पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन.सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जाने वाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है। आज फिर जब लोग ‘साइमन कमीशन’ से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाये हैं और इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं, विदेशी सरकार ‘सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ (पब्लिक सेफ्टी बिल) और ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ (ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आने वाले अधिवेशन में ‘अख़बारों द्वारा राजद्रोह रोकने का क़ानून’ (प्रेस सैडिशन एक्ट) जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करने वाले मज़दूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैये पर चल रही है।राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गम्भीरता को महसूस कर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ’ ने अपनी सेना को यह क़दम उठाने की आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रयोजन है कि क़ानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाये। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परन्तु उसकी वैधानिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है।जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखण्ड को छोड़ कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जायें और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरुद्ध क्रान्ति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘औद्योगिक विवाद’ के दमनकारी क़ानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह क़दम उठा रहे हैं।हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्ज्वल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतन्त्रता का अवसर मिल सके। हम इन्सान का ख़ून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परन्तु क्रान्ति द्वारा सबको समान स्वतन्त्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रान्ति में कुछ न कुछ रक्तपात अनिवार्य है।इन्क़लाब ज़िन्दाबाद!ह. बलराजकमाण्डर इन चीफ़-----------------------------------"बम काण्ड" पर भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली सेशन जज की अदालत में 6 जून 1929 को दिये गये साझा बयान में कहा था कि,“क्रान्ति से हमारा अभिप्राय है मुट्ठी भर परजीवी जमातों द्वारा आम जनता की मेहनत की लूट पर आधारित, अन्याय पर आधारित मौजूदा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन।”हमारे शहीदों के इस कथन को याद करते हुए, आज हमें आम छात्र-युवा और मेहनतकश जनता को हर प्रकार के शोषण और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ एकजुट कर, एक समतामूलक समाज के निर्माण के लिए संघर्ष खड़ा करने की ज़रूरत है।अमर शहीदों का पैगाम! जारी रखना है संग्राम!!...दिशा छात्र संगठन ... 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