दिशा छात्र संगठन-इविवि इकाई की ओर से महान जाति विरोधी योद्धा अय्यंकालि के स्मृति दिवस (18 जून, 1941) पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।
अय्यंकालि उन जाति विरोधी योद्धाओं में से थे जिन्होंने समानता का हक़ हासिल करने के लिए एक जुझारू लड़ाई लड़ी और कामयाब हुए। आज ज्यादातर लोग अय्यंकालि के बारे में नहीं जानते हैं। अय्यंकालि का जन्म केरल की सर्वाधिक उत्पीड़ित दलित जातियों में से एक पुलयार जाति में हुआ था। उन्हें नायर जाति के जमींदारों से लेकर उच्च जातियों के अपमानजनक और बर्बर किस्म के दमन और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता था। इस स्थिति ने अय्यंकालि को बदलाव के लिए प्रेरित किया। अय्यंकालि शुरू से ही समझते थे कि उच्च जातियों द्वारा दलितों के दमन और उनके खिलाफ की जाने वाली हिंसा के प्रश्न पर अंग्रेज सरकार कुछ नहीं करने वाली इसलिए इस हिंसा और दमन का जवाब उन्होंने खुद सड़कों पर देने का रास्ता अपनाया। अय्यंकालि ने दलितों को सड़क पर चलने और पुलयार जाति की स्त्रियों के लिए ऊपरी शरीर को ढकने का अधिकार दिलवाया। उन्होंने दलित बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिले का अधिकार दिलवाया।

अय्यंकालि ने सिद्ध किया कि दमित और उत्पीड़ित आबादी ना सिर्फ लड़ सकती है बल्कि जीत भी सकती है। आज अय्यंकाली के संघर्ष को याद करते हुए जाति उन्मूलन के आंदोलन को सुधारवाद और व्यवहारवाद के गोल चक्कर से निकालकर मेहनतकशों की वर्गीय एकता पर आधारित एक जुझारू जन आन्दोलन की दिशा में आगे ले जाना होगा।

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