कोलकाता में सामूहिक बलात्कार की शिकार छात्रा को न्याय दो!
बढ़ते स्त्री विरोधी अपराधों पर चुप्पी तोड़ो!!
26 जून को साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज कैम्पस में एक छात्रा के साथ तीन लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आयी। इन तीन दरिन्दों ने उस छात्रा को बर्बर तरीके से मारा-पीटा और इस भयावह घटना का वीडियो रिकॉर्ड कर उसे धमकी दी कि अगर उसने मुँह खोला तो यह वीडियो सार्वजनिक कर दिया जायेगा। यह घटना तब हुई जब उक्त छात्रा शाम को अपने कॉलेज गयी थी। स्तब्ध करने वाली बात यह है कि यह घटना कोलकाता जैसे महानगर के प्रतिष्ठित लॉ-कॉलेज में हुई है। पिछले साल आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज में हुई निर्मम घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था, जनता के प्रदर्शनों के दबाव में पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार द्वारा महिला सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम करने का आश्वासन दिया गया था जिसमें शिक्षण संस्थानों में विशेष व्यवस्था करने की भी बात थी। लेकिन, साउथ कोलकाता कॉलेज में हुई इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि ये तामम वायदे झूठों का पुलिन्दा साबित हुए हैं।
इस घटना में छात्रा के बयान पर जिन तीन दोषियों को पकड़ा गया है, उनमें से एक दोषी मोनोजित मिश्रा कुछ साल पहले तक टीएमसी के छात्र-विंग से जुड़ा हुआ था। उस पर पहले भी छात्राओं के साथ छेड़-छाड़ करने और उन्हें धमकाने के आरोप लगते रहें हैं। उसके ख़िलाफ़ मामले भी दर्ज किये गये हैं। लेकिन, उस पर कभी भी कड़ी कार्रवाई नहीं की गयी। अपने राजनीतिक सम्बन्धों और रसूख़ का इस्तेमाल कर वह क़ानूनी कार्रवाईयों से बचता रहा है। सवाल तो कॉलेज प्रशासन पर भी उठता है कि जब साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज के प्रशासन को मोनोजित मिश्रा की करतूतों के बारे में जानकारी थी, तो फिर उसके कॉलेज कैम्पस में आने-जाने पर रोक क्यों नहीं लगायी गयी?
देश में महिला सुरक्षा को लेकर तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ बड़े-बड़े वायदे करती हैं, लेकिन महिला सुरक्षा के हालात जस के तस बने रहते हैं। देश का कोई ऐसा हिस्सा नहीं है, जहाँ जघन्य स्त्री विरोधी घटनाएँ नहीं घटित होती हो। अक्सर देखा गया है कि ऐसी जघन्य स्त्री विरोधी घटनाओं के बाद सत्ता में बैठे लोग नैतिकता ज्ञान देने लग जाते हैं, इस घटना के बाद जब सत्तारूढ़ टीएमसी पर सवाल उठने लगे तब टीएमसी के बड़े नेता माने जाने वाले मदन मित्रा ने यह बयान दिया कि आख़िर छात्रा को कॉलेज बन्द हो जाने के बाद शाम में कॉलेज जाने की क्या ज़रूरत थी? इसके पहले टीएमसी के एक और नेता एवं सांसद कल्याण बनर्जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि लड़कियों को बुरी नीयत वाले व्यक्तियों से दूर रहना चाहिए। बनर्जी ने आगे यह भी कहा कि यह कॉलेज प्रशासन की विफलता है, सरकार की नहीं और पुलिस के लिए यह सम्भव नहीं है कि हर जगह पर महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराई जा सके! जी हाँ, यह बयान जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के हैं। इनके अनुसार महिलाएँ अपनी सुरक्षा के लिए ख़ुद ज़िम्मेदार है, सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है!
इस पूरी घटना पर बंगाल में ऐसे संगठन का विरोध प्रदर्शन जारी है जिसने अपनी पार्टी के करतूतों और अपने नेता के स्त्री विरोधी अपराधों पर चूँ तक नहीं की! अभाविप जैसे छात्र संगठन और संघ से जुड़े तमाम संगठन इसपर ख़ूब उछल कूद मचा रहे हैं। स्त्री सुरक्षा और ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा देनी वाली इसी भाजपा सरकार के कार्यकाल में ना सिर्फ़ स्त्री विरोधी अपराधों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है बल्कि बलात्कारियों को सत्ता का खुलेआम संरक्षण प्रदान किया जाता रहा है। कुलदीप सिंह सेंगर, आसाराम, राम रहीम, चिन्मयानन्द, बिल्किस बानो, कठुआ, उन्नाव आदि की लम्बी फ़ेहरिस्त है! ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि आज जो अभाविप और संघ बंगाल में हुई इस घटना का विरोध कर रहे हैं उन्होंने ऊपर गिनायी गयी इन तमाम घटनाओं पर मुँह क्यों नहीं खोला?! मुँह खोलना तो दूर, उल्टे इन्होंने बलात्कारियों के पक्ष में रैलियाँ निकाली हैं! आज इनका दोमुँहापन साफ़ ज़ाहिर है! इनके लिए बढ़ते स्त्री विरोधी अपराध का मसला बस एक चुनावी मुद्दा है। आज इनकी नौटंकी को भी सरेआम बेपर्द करने की ज़रूरत है!
इसके साथ ही, हमें ऐसे रुग्ण बयान देकर अपनी सरकारों का बचाव करने वाले ऐसे चुनावबाज़ पार्टियों के सांसदों और नेताओं के असली चेहरों को जनता के समक्ष बेनकाब करना होगा। इसके साथ ही ऐसी तमाम स्त्री-विरोधी घटनाओं के पीछे के कारणों को समझना होगा। आज पूँजीवादी व्यवस्था ने एक ऐसी बाज़ारू संस्कृति पैदा की है जिसमें स्त्रियों को महज़ एक उपभोग की वस्तु के रूप में देखा जाता है। पितृसता व पूँजीवाद के रुग्ण गठजोड़ के कारण स्त्री विरोधी मानसिकता समाज के पोर-पोर में समा चुकी है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि इस मानवद्रोही व्यवस्था के ख़िलाफ़ फ़ैसलाकुन लड़ाई के लिए एकजुट हुआ जाये, क्योंकि बिना इस व्यवस्था के अन्त के स्त्री विरोधी अपराधों पर लगाम नहीं लगायी जा सकती है। लेकिन, इसके साथ तात्कालिक तौर पर ऐसी हरेक स्त्री विरोधी घटना में हमें इसकी शिकार बनी महिला के साथ खड़े होना होगा, ताकि उसे इंसाफ़ मिल सके। ऐसी हरेक घटना पर सत्ता में बैठी चुनावबाज़ पार्टियों को घेरना होगा। आज जब इन चुनावबाज़ पार्टियों के नेता ख़ुद बेशर्मी से यह बयान दे रहे हैं कि सरकार ऐसी घटनाओं में क्या कर सकती है, तब महिलाओं को ख़ुद ही आगे आना होगा। ऐसे महिला स्क्वाड्स का गठन करना होगा, जो सड़कों पर छेड़खानी करने वाले शोहदों को माकूल जवाब दें। ताकि, ऐसी किसी भी स्त्री-विरोधी घटना को अंजाम देने की उनकी हिम्मत नहीं हो सके।
दिशा छात्र संगठन यह माँग करता है कि साउथ कोलकाता कॉलेज के तीनों दोषियों को फास्ट ट्रैक कोर्ट चलाकर त्वरित सज़ा दी जाये। इसके अतिरिक्त छात्रा की नैतिकता पर सवाल उठाने वाले और स्त्री सुरक्षा को सरकार की ज़िम्मेदारी मानने से मना करने वाले सांसद पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाये।