दिशा छात्र संगठन के द्वारा “क्या बढ़ती आबादी समस्या है?” इस विषय पर परिचर्चा का आयोजन

दिनांक 29 जून को दिशा छात्र संगठन के द्वारा “क्या बढ़ती आबादी समस्या है?”इस विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।परिचर्चा की शुरुआत में दिशा छात्र संगठन के अजीत ने विषय की भूमिका रखते हुए कुछ सवालों को रखा जिस पर आगे अलग-अलग साथियों ने अपनी बातें रखी।


चर्चा की शुरुआत में यह बात आयी कि जनसंख्या सच में बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि इतनी बड़ी आबादी के लिए हमारे यहां संसाधन नाकाफी है। साथ ही जनसंख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन संसाधन नहीं बढ़ रहे हैं। ठीक इसी वजह से सब को रोजगार भी नहीं मिल पा रहा है। इस पर अपनी बात रखते हुए दिशा छात्र संगठन की तरफ से आशीष ने कहा कि यह आम तौर पर दिया जाने वाला तर्क सतही स्तर पर सही लगता है लेकिन सच्चाई दूसरी है।उन्होंने अपनी बात में कहा कि आबादी के अनुपात में संसाधन में कई गुना ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने तथ्य को भी प्रस्तुत किया।
इसके बाद यह भी बात आयी कि इस विषय में आमतौर पर जो तर्क दिया जाता है वह कोई नया तर्क नहीं है बल्कि पिछले 200 सालों से इसे उछाला जा रहा है। तब से लेकर आज तक दुनिया की जनसंख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो चुकी है और यह तर्क गलत साबित हो चुका है क्योंकि आबादी बढ़ने से सिर्फ खाने वाले पेट नहीं बल्कि काम करने वाले हाथ भी बढ़ते हैं। साथ ही विज्ञान और तकनीक भी बढ़ती है।
इसके साथ ही जनसंख्या बढ़ोतरी के कारणों पर भी बात हुई तथा यह बताया गया कि “जन्म दर का ज्यादा होना”आबादी के बढ़ने का कारण नहीं है बल्कि “मृत्यु दर का घटना” इसका असली कारण है। चिकित्सा विज्ञान में विकास के कारण यह संभव हो पाया है।
इसके बाद रोजगार के ऊपर आबादी के बढ़ने से क्या फर्क पड़ता है इस पर मृत्युंजय ने अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि आज प्राथमिक शिक्षक से लेकर प्रोफेसर तक के साथ ही डॉक्टर से लेकर नर्स तक के लाखों पद पूरे देश भर में खाली है। सिर्फ इन सीटों को भर दिया जाए तो लाखों लोगों को रोजगार मिल सकता है। साथ ही सरकार के द्वारा रोजगार के अवसर खत्म करने तथा सरकारी संस्थानों का निजीकरण किए जाने के कारण रोजगार में आयी कमी पर भी अपनी बात रखी।
अंत में दिशा छात्र संगठन के अजीत ने इस परिचर्चा के समापन की घोषणा करते हुए यह बात रखी की असल समस्या जनसंख्या का बढ़ना नहीं बल्कि संसाधन का असमान बँटवारा है। पूरे देश के बहुत बड़े संसाधन पर कुछ मुट्ठी भर लोगों का कब्जा है। मुनाफे की अंधी हवस पर टिकी यह पूंजीवादी व्यवस्था जिसमें कुछ लोगों के मुनाफे के लिए बहुत बड़ी आबादी को जिंदगी के मूलभूत ज़रूरतों से वंचित रखा जाता है।
हम छात्रों नौजवानों को बढ़ती जनसंख्या को समस्या के तौर पर देखने के बजाय इस व्यवस्था के वितरण प्रणाली में जोकि कुछ लोगों के मुनाफ़े को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, उसे समस्या के तौर पर देखना चाहिए तथा समाधान के बारे में सोचते हुए संगठित होकर संघर्ष करना चाहिए।