विश्वविद्यालयों को फ़ासीवाद की प्रयोगशाला बनाने के विरुद्ध दिशा छात्र संगठन का प्रस्ताव<br>

फ़ासीवादी मोदी सरकार ने पिछले एक दशक के शासनकाल में शिक्षा व्यवस्था के व्यवस्थित फ़ासीवादीकरण को अंज़ाम दे रही है। 2020 में नयी शिक्षा नीति को लागू करना इस दिशा में एक मील का पत्थर था। अब जैसे-जैसे नयी शिक्षा नीति अमल में आ रही है, यह प्रक्रिया रफ़्तार पकड़ती जा रही है। इसकी एक बानग़ी हाल के दिनों में तब देखने को मिली जब लखनऊ विश्वविद्यालय में एक फ़रमान ज़ारी करके ‘प्रोफ़ेसर ऑफ़ प्रैक्टिस’ शिक्षकों की नियुक्ति के लिए योग्यता को समाप्त दिया है। इन तथाकथित प्रोफ़ेसरों की नियुक्त के लिए किसी तरह की शैक्षणिक योग्या की शर्त नहीं रखी गयी है। ज़ाहिर है कि यह इन शैक्षणिक संस्थानों में अपने शिक्षकों के नाम पर फ़ासीवादी गुर्गों को घुसाने का एक षड्यंत्र है। इसी तरह राम मन्दिर के उद्घाटन की बरसी पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में हनुमान चालीसा के पाठ से लेकर तरह-तरह के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कराया गया। संघ की फ़ासिस्ट गुण्डा वाहिनी एबीवीपी के सम्मेलन के लिए पिछले दिनों गोरखपुर विवि प्रशासन ने पलक पाँवड़े बिछा दिये और गोरखपुर जिला प्रशासन ने विभिन्न विद्यालयों को आदेश जारी किया कि वे अपने छात्रों को लेकर सम्मेलन में शामिल हों। वास्तव में राज्यसत्ता के आन्तरिक टेकओवर और राज्य और समाज के पोर-पोर में अपनी पैठ जमा चुके फ़ासीवादी ताक़तों के विरुद्ध क्रान्तिकारी छात्र-युवा आन्दोलन आज की ज़रूरत है जो छात्रों-युवाओं को उनके वर्गीय सवालों पर लामबन्द करते हुए ही खड़ा हो सकता है। दिशा छात्र संगठन की केन्द्रीय परिषद छात्रों-युवाओं और इंसाफ़पसन्द नागरिकों से विश्वविद्यालयों को फ़ासीवाद की प्रयोगशाला बनाने के विरुद्ध एकजुट होने का आह्वान करती है।

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