हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेहमुला की आत्महत्या भाजपा नेताओं व विश्वविद्यालय प्रशासन के फ़ासीवादी व निरंकुश दबाव के चलते होने वाली हत्या है!

हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेहमुला की आत्महत्या भाजपा नेताओं व विश्वविद्यालय प्रशासन के फ़ासीवादी व निरंकुश दबाव के चलते होने वाली हत्या है!

साथियो,

हैदराबाद विश्वविद्यालय के शोध छात्र रोहित वेहमुला ही आत्महत्या किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के दिलो-दिमाग को सुन्न कर देने वाली घटना है। परन्तु वास्तव में ये आत्महत्या नहीं बल्कि भाजपा नेताओं व निरंकुश विश्वविद्यालय प्रशासन के दबाव में होने वाली हत्या है। साथियो, इस सरकार के नेतृत्व में मौजूदा व्यवस्था तर्क, प्रतिभा व लोकतन्त्र की कब्रगाह बन चुकी है। रोहित वेहमुला ‘अम्बेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन’ से जुड़े थे। फाँसी के मुद्दे पर चलने वाली बहस के सन्दर्भ में रोहित पर हैदराबाद वि0वि0 में सेमिनार करने व ए0बी0वी0पी0 के एक कार्यकर्ता से मारपीट का आरोप लगाया गया था। जब ए0बी0वी0पी0 के उस कार्यकर्ता की मेडिकल जाँच हुई तो सामने आया कि उसके साथ कोई मारपीट नहीं हुई तथा सिक्योरिटी गार्डों ने भी इस बात की पुष्टि की कि कोई मारपीट नहीं हुई और जिन दलित छात्रों पर आरोप लगाया है वे निर्दोष हैं। यूनिवर्सिटी की प्रोक्टोरियल जाँच में रोहित वेहमुला निर्दोष सिद्ध हो चुके थे। पर भाजपा का केन्द्रीय मंत्री बंदारू दत्तात्रेय भाजपा की केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को ऑफिशियल चिट्ठी लिखता है कि यूनिवर्सिटी नरमी बरत रही है। ‘अम्बेडकर स्टूडेन्ट्स एसोशिएसन’ पर कार्रवाई कीजिए। स्मृति ईरानी के निर्देश पर वाइस चांसलर पाँच छात्रों के सामाजिक बहिष्कार का नोटिस जारी कर देते हैं और उनको हॉस्टल से निकाल दिया जाता है। लोकतन्त्र व समानता का छल-छद्म इस घटना से एक बार फिर तार-तार हो जाता है। रोहित वेहमुला सहित ये छात्र इस निरंकुश फैसले के ख़िलाफ़ अनशन पर बैठे थे। कल रोहित बेहमुला ने आत्महत्या कर ली। रोहित

वेहमुला एक प्रतिभावान व समाज के लिए चिन्तित होने वाले छात्र थे। उनके द्वारा छोड़ी गई चिट्ठी का एक अंश हम दे रहे हैं-‘मुझे विज्ञान से प्यार था, सितारों से, प्रकृति से, लेकिन मैंने लोगों को प्यार किया और ये नहीं जान पाया कि वो कब के प्रकृति को तलाक दे चुके हैं…हमारी भावनायें दोयम दर्ज़े की हो गयी हैं। हमारा प्रेम बनावटी है। हमारी मान्यताएं झूठी हैं। हमारी मौलिकता वैध है बस कृत्रिम कला के जरिये। यह बेहद कठिन हो गया है कि हम प्रेम करें और दुःखी न हों। एक आदमी की कीमत उसकी तात्कालिक पहचान और नज़दीकी सम्भावना तक सीमित कर दी गई है। एक वोट तक। आदमी एक आंकड़ा बनकर रह गया है। एक वस्तु मात्र। कभी भी एक आदमी को उसके दिमाग़ से नहीं आंका गया। एक ऐसी चीज़ जो स्टारडस्ट से बनी थी। हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में।’

साथियो, आज पूरे देश में जब एक ओर मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर जनता के आक्रोश को कुचलने के लिए समानान्तर निरंकुश तंत्र भी चुस्त-दुरुस्त किया जा रहा है। लोगों को मजहब के नाम पर भड़काया जा रहा है, लड़ाया जा रहा है। जनता का पक्ष लेकर बोलने व लड़ने वाले छात्रों-युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, बुद्धिजीवियों पर कट्टरपंथी फ़ासीवादी गिरोह का हमला बड़े पैमाने पर शुरू हो चुका है। अन्धविश्वास व पोंगापन्थ को बढ़ावा दिया जा रहा है। जबकि तर्क व वैज्ञानिकता की सरेआम हत्या की जा रही है। विश्वविद्यालयों में रहे-सहे लोकतान्त्रिक स्पेस को ख़त्म कर उन्हें बैरकों में बदला जा रहा है।

साथियो, वक़्त है जागने का! कट्टरपंथी मज़हबी हत्यारे निरंकुश फ़ासीवादी ताकतों का मुँहतोड़ जबाव देने का। नहीं तो हत्यारों के गिरोह कल अपना खंजर लेकर उन तक भी पहुँचेंगे जो इन घटनाओं के बाद भी चुप हैं या आगा-पीछा सोच रहे हैं।

इंकलाब ज़िन्दाबाद!

फ़ासीवाद हो बर्बाद!!