दिशा छात्र संगठन की पटना इकाई द्वारा आरक्षण पर एक विचार विमर्श चक्र का आयोजन

8 जून को दिशा छात्र संगठन द्वारा ‘आरक्षण पक्ष विपक्ष एवं तीसरा पक्ष’विषय पर ऑनलाइन विचार विमर्श चक्र का आयोजन किया गया। देश के विभिन्न हिस्सों से छात्रों एवं नौजवानों ने इस आयोजन में हिस्सा लेकर उक्त विषय पर अपने मत को प्रकट किया। हम सभी भलीभांति वाकिफ हैं कि आरक्षण छात्रों नौजवानों के बीच बेहद चर्चित विषयों में से एक है। आरक्षण के विषय पर जब भी कहीं बातचीत होती है वहां स्वतः लोग हिस्सों में विभाजित हो जाते हैं,इसके पक्ष एवं विपक्ष में। कल भी ठीक ऐसा ही हुआ। कु

छ लोगों का कहना था कि आरक्षण के कारण कम योग्यता वाले लोग भी चयनित हो जाते हैं एवं अधिक योग्यता रखने वाले लोग भी चयनित नहीं हो पाते इसीलिए यह अन्याय पूर्ण व्यवस्था है इसे खत्म हो जाना चाहिए। इसके विपक्ष में इससे मिलते-जुलते और भी कई सारे तर्क दिए गए। आरक्षण के पक्ष में बात रखते हुए कई साथियों ने कहा कि यह व्यवस्था दलितों एवं पिछड़ों को भी आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है इसलिए इसे जारी रखना चाहिए। अतीत में छुआछूत एवं अन्य प्रकार के सामाजिक कुरीतियों के शिकार इस आरक्षण की व्यवस्था से समाज के मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं तो इससे भला क्या दिक्कत है। इस तरह के तमाम तर्कों पर दिशा के तरफ से बात रखते हुए साथी आकाश ने कहा कि आरक्षण के विपक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं वह एकदम मान्य नहीं है क्योंकि जब पैसे के दम पर कैपिटेशन फीस देकर कम “योग्यता” वाले लोग अच्छे संस्थानों में एडमिशन लेते हैं तो वहां आपकी चिंता कहां जाती है। ऐसे साथियों को इसका भी विरोध करना चाहिए। जो लोग आरक्षण के पक्ष में खड़े हैं उन्हें यह समझना होगा कि आरक्षण लागू होने के इतने साल बाद भी दलितों का एक बेहद छोटा हिस्सा मध्यम वर्ग में शामिल हो पाया है। आज भी दलितों की 90 फ़ीसदी आबादी सामाजिक एवं आर्थिक तौर पर शोषित है। पैबंद से शर्ट तैयार नहीं किया जा सकता है। आरक्षण की व्यवस्था लागू होने के बाद से आज तक दलित आबादी के जीवन स्थिति में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया है। जाति मुक्ति की परियोजना अलग से चर्चा का विषय है। उन्होंने अपने बातचीत में कई सारे उदाहरण देखकर स्पष्ट करते हुए कहा कि आज नामांकन या नौकरियों में सीटों की संख्या की इतनी कम है कि आरक्षण को खत्म कर दिया जाए या इसे और बढ़ा दिया जाए दोनों ही स्थितियों में सभी लोगों को दलित एवं सवर्ण दोनों ही समुदाय से आने वाले सभी उम्मीदवारों को इसका लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए असल समस्या आरक्षण नहीं सीटों की कम संख्या है। सबके लिए एक समान एवं निशुल्क शिक्षा तथा रोजगार के समान अवसर अगर प्रदान किए जाते हैं तो आरक्षण का मुद्दा स्वतः अप्रसांगिक हो जाता है, इसलिए हमें सबके लिए शिक्षा एवं रोजगार को बुनियादी अधिकार बनाने के लिए संघर्ष करना होगा।