“इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने इससे भी अधिक महत्वपूर्ण काम है।नौजवानों को क्रांति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाएगा।”
– शहीद-ए-आज़म भगतसिंह
दिशा छात्र संगठन-इविवि इकाई की ओर से आज ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। पर चर्चा में इलाहाबाद समेत प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों छात्रों ने हिस्सा लिया। परिचर्चा में बात रखते हुए प्रसेन ने कहा कि आज देश मे छात्र-युवा आन्दोलन कई प्रकार के भटकावों का शिकार है। विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति चुनावी पार्टियों के लिए एमपी, एमएलए बनने की ट्रेनिंग सेण्टर बन चुकी है। जिन नौजवानों में बदलाव की भावना होती है, उसमें से ज्यादातर नौजवान, अस्मितावाद, संसदीय वामपंथी पार्टियों; जिनकी कुल राजनीति कैम्पसों की चौहद्दी में कैद रहती है और क्रांतिकारिता का भ्रम पैदा करने वाली अराजकतावादी-आतंकवादी धारा, जो तुरत-फुरत बन्दूक के दम पर बिना जन गोलबंदी के क्रांति करने के फिराक में हैं, में फंस जाते हैं।
एक सच्ची क्रान्तिकारी छात्र-युवा राजनीति का मतलब केवल फ़ीस-बढ़ोत्तरी के विरुद्ध लड़ना, कक्षाओं में सीटें घटाने के विरुद्ध लड़ना, मेस में ख़राब ख़ाने को लेकर लड़ना, छात्रवासों की संख्या बढ़ाने के लिए लड़ना, कैम्पस में जनवादी अधिकारों के लिए लड़ना या यहाँ तक कि रोज़गार के लिए लड़ना मात्र नहीं हो सकता। क्रान्तिकारी छात्र राजनीति वही हो सकती है जो कैम्पसों की चौहद्दी से बाहर निकलकर छात्रों को व्यापक मेहनतकश जनता के जीवन और संघर्षों से जुड़ने के लिए तैयार करे और उन्हें इसका ठोस कार्यक्रम दे। ऐसा किये बिना मध्यवर्गीय छात्र अपनी वर्गीय दृष्टि-सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकते। क्रान्तिकारी परिवर्तन की भावना वाले छात्रों को राजनीतिक शिक्षा और प्रचार के द्वारा यह बताना होगा कि मज़दूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश जनता के संघर्षों में प्रत्यक्ष भागीदारी किये बिना और उसके संघर्षों के साथ अपने संघर्षों को जोड़े बिना वे उस पूँजीवादी व्यवस्था को क़त्तई नष्ट नहीं कर सकते जो सभी समस्याओं की जड़ है। व्यापक मेहनतकश जनता के जीवन और संघर्षों में भागीदारी करके ही मध्यवर्गीय छात्र अराजकतावाद, व्यक्तिवाद और मज़दूर वर्ग के प्रति तिरस्कार–भाव की प्रवृत्ति से मुक्त हो सकते हैं और सच्चे अर्थों में क्रान्तिकारी बन सकते हैं।