दिशा छात्र संगठन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय इकाई की ओर से ‘उत्तर प्रदेश जनसंख्या बिल – 2021: क्या वाकई जनसंख्या एक समस्या है’ विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। बातचीत के दौरान शासक वर्ग द्वारा जनसंख्या को समस्या के तौर पर स्थापित किये जाने के इतिहास पर चर्चा की गयी। परिचर्चा में माल्थस के झूठे तथ्यों पर आधारित सिद्धान्त, भारत और दुनिया भर ‘के फ़ासीवादियों द्वारा इतिहास और वर्तमान में द्वारा नस्लीय/धार्मिक तौर पर एक आबादी को निशाना बनाने के लिए आबादी विशेष को समस्या के रूप में प्रस्तुत किये जाने, संघ/भाजपा द्वारा मुस्लिम आबादी के बढ़ने के मिथक का प्रचार आदि पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गयी। तथ्यों के साथ यह स्पष्ट किया गया कि आज़ादी के बाद से अब तक आबादी की तुलना में देश में खाद्यान्न, खनिज, उद्योग धन्धों समेत हर तरह के संसाधनों में कई गुना वृद्धि हो चुकी है और पूरे देश की आबादी की भोजन, शिक्षा, चिकित्सा, रोज़ समेत सभी ज़रूरतों को हल किया जा सकता है।
इस पूरी पृष्ठभूमि के आधार पर बताया गया कि वास्तव में योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 जनता के जनवादी अधिकारों पर एक फासीवादी हमला है जो यह प्रावधान करने का प्रस्ताव रखता है कि दो से ज्यादा बच्चे वाले माँ-बाप के निकाय चुनाव लड़ने, सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने और प्रमोशन हासिल करने आदि पर रोक लगा दी जायेगी। इतना ही नहीं, इस बिल में किसी भी परिवार में चार व्यक्तियों का ही राशन कार्ड बनाये जाने जैसे कई जनविरोधी प्रावधान किये गये हैं। बातचीत के दौरान आँकड़ों से दिखाया गया कि सरकार का यह दावा कि प्रदेश में संसाधनों की बहुत कमी है और समान वितरण तथा सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य की जनसंख्या को नियंत्रित करना, स्थिर करना ज़रूरी है, एक सफ़ेद झूठ है। दूसरे प्रदेश इस बिल के पारित होने पर सरकार प्रदेश के कुल प्रजनन दर (टीएफ़आर) को 2.7 से घटाकर 2.1 पर लाने का दावा कर रही है। जबकि सच्चाई यह है कि प्रदेश की टीएफ़आर दर पहले से ही घट रही है, और यह राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा तेज़ी से घट रही है।
वास्तव में भारत समेत पूरी दुनिया की आबादी का रुझान स्थिर होते हुए घटने की तरफ़ बढ़ रहा है। बहुत से देश जिन्होंने एक बच्चे की नीति अपना रखी थी, उन्हें अपनी जनसंख्या नीति में बदलाव करना पड़ रहा है क्योंकि उन देशों में कार्यबल में वृद्धों की संख्या बढ़ रही थी। वास्तव में योगी सरकार द्वारा लाया गया यह बिल सरकार अपनी जिम्मेदारी को जनता के सिर पर मढ़ देने वाला बिल है जो अपने पुराने फ़ासीवादी दुष्प्रचार के तहत लाया गया है। जनता को दोषी ठहराने वाले इस बिल का विरोध करते हुए हमें हर व्यक्ति के लिए भोजन, आवास, स्वास्थ्य की व्यवस्था करने, समान शिक्षा और सबको रोजगार की माँग बुलन्द करने के लिए एकजुट होना चाहिए।
बातचीत के अन्त में सवाल-जवाब के सत्र आयोजित करके शामिल होने वाले छात्रों के प्रश्नों पर चर्चा की गयी।