दिल्ली पुलिस की तमाम तिकड़मों के बावजूद नताशा, देवांगना और आसिफ जेल से छूटे..
सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करो! दिल्ली दंगों के असली आरोपियों को गिरफ्तार करो साथी नताशा, देवांगना और आसिफ को…
सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करो! दिल्ली दंगों के असली आरोपियों को गिरफ्तार करो साथी नताशा, देवांगना और आसिफ को…
दिशा छात्र संगठन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय इकाई की ओर से शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के जन्मदिवस पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।…
राम प्रसाद बिस्मल ने कहा था अगर देश की जनता हमारी मौत से थोड़ा भी दुखी है तो जितना हो…
8 जून को दिशा छात्र संगठन द्वारा ‘आरक्षण पक्ष विपक्ष एवं तीसरा पक्ष’विषय पर ऑनलाइन विचार विमर्श चक्र का आयोजन…
Under the new education policy brought by the central government last year, the scheme of saffronisation of education is now…
[पीडीएफ करिता इथे क्लिक करा. ] मसुदा घोषणापत्र प्रस्तावना विद्यार्थी आणि तरुण साथींनो! आपण भारतीय इतिहासाच्या अभूतपूर्व अशा अंधकारमय टप्प्यातून…
मसौदा घोषणापत्र प्राक्कथन छात्र दोस्तो! युवा साथियो! हम भारतीय इतिहास के एक अभूतपूर्व रूप से अन्धकारमय दौर से गुज़र रहे…
NEP 2020 promises ‘groundbreaking’ reforms but the provisions of this policy state otherwise. The whole draft abounds with contradictoriness and paradoxes. The policy is said to improve the quality and standard of education while at the same time relieving the government of its responsibility to provide free education up to second standard. The education policy admits that there is a shortage of 10 lakh teachers at school level, however, it does not provide any concrete plan on how these vacancies will be filled. It also denies the role of teachers for the foundational stage of first five (3+2) years. This task will now be handed over to NGOs and Anganwadi Workers. The policy is quite gung ho about the so-called structural adjustment which is in fact a euphemism for extracting more out of same limited resources, thereby giving an opportunity to the state to shirk its responsibilities.
नयी शिक्षा नीति 2020 लागू होने के बाद उच्च शिक्षा के हालात तो और भी बुरे होने वाले हैं। पहले से ही लागू सेमेस्टर सिस्टम, एफवाईयूपी, सीबीडीएस, यूजीसी की जगह एचईसीआई इत्यादि स्कीमें भारत की शिक्षा व्यवस्था को अमेरिकी पद्धति के अनुसार ढालने के प्रयास थे। अब विदेशी शिक्षा माफिया देश में निवेश करके अपने कैम्पस खड़े कर सकेंगे और पहले से ही अनुकूल शिक्षा ढाँचे को सीधे तौर पर निगल सकेंगे। शिक्षा के मूलभूत ढाँचे की तो बात ही क्या करें यहाँ तो शिक्षकों का ही टोटा है। केन्द्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में क़रीबन 70 हजार प्रोफेसरों के पद ख़ाली हैं।
शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के 109वें जन्मदिवस (28 सितम्बर) के अवसर पर भगतसिंह तुम ज़िन्दा हो, हम सबके संकल्पों में! प्यारे भाइयो,…
आज होंडा के मज़दूर साथियों राकेश, बंसीलाल, इच्छा पूरण सिंह, प्रह्लाद, गोविंद और दिशा छात्र संगठन व अन्य छात्र संगठनों…
दोस्तो, गत 20 सितम्बर को महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय की एम. कॉम. (वाणिज्य संकाय) की एक छात्रा ने छात्रावास में ही…
An appeal to Students and Youth! JOIN THE HUNGER STRIKE OF THE STRUGGLING HONDA WORKERS AT JANTAR MANTAR ON 19…
दिशा आपके बीच क्यों? साथियो! विश्वविद्यालय के नये सत्र में हम आपका तहे-दिल से स्वागत करते हैं। विश्वविद्यालय में…
हैदराबाद विश्वविद्यालय के दलित छात्र रोहित वेहमुला की आत्महत्या भाजपा नेताओं व विश्वविद्यालय प्रशासन के फ़ासीवादी व निरंकुश दबाव के…